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Tuesday, May 3, 2022

भगवान परशुराम के तपोभूमि मनियर में बड़े धूमधाम से मनाया गया परशुराम जयंती



उपेन्द्र तिवारी

मनियर- नगर पंचायत मनियर में परशुराम मंदिर नगर धर्म के मामले में विख्यात रहा है क्योंकि  प्रचीन काल में यह पर कई ऋषि-मुनियों ने तप किया था जिसमें विष्णु के छट्ठे अवतार के रूप में विख्यात भगवान परशुराम भी रहे हैं।भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में अक्षय तृतीया के दिन हुआ था ।इनके जन्म स्थान के बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत है। कोई मध्यप्रदेश के इंदौर के जानापाव, तो कोई छत्तीसगढ़ के सरगुजा के कलचा गांव, तो कोई उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के जलालाबाद बताता जा रहा है । वहीं भृगु क्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार कौशिकेय के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म बलिया जनपद के खैराडीह में हुआ था।भगवान परशुराम का मंदिर मनियर में है जिनकी स्थापना की सटीक जानकारी नहीं मिलती लेकिन मनियर के प्रकांड विद्वान का कहना है कि परशुराम मंदिर के किसी गेट पर श्रीनाथ राय द्वारा संवत 1560 में जीर्णोद्धार कराए जाने की बात लिखी गई है।भगवान परशुराम की तपोभूमि मनियर बताई जाती है ।यहां भगवान परशुराम तप करते थे। उस समय यह क्षेत्र घना जंगल था ।जंगलों में मणिधर सर्प हुआ करते थे जिसके कारण इसका नाम मणिवर पड़ा। बाद में यहाँ मुनियों द्वारा तपस्या किए जाने के कारण मुनिवर पड़ा। उस मणिवर व मुनिवर का वीभत्स रूप आज मनियर है  विद्वान बताते हैं कि भगवान परशुराम जब यहां ध्यान मुद्रा में लीन होते थे तो बहेरा कुंवर नामक राक्षस ताल ठोंक कर और गर्जना कर उनका तप भंग किया करता था जिसके कारण एक दिन भगवान परशुराम ने उसे मऊ जनपद के ताल रतोह में युद्ध के दौरान मार डाला और उसके शव को घसीटते हुए मनियर लाकर घाघरा नदी में जल प्रवाह किया।उसके शव के भार के वजह से जिस रास्ते से घसीट कर लाए थे उस रास्ते में नाला बनता गया ।वह नाला आज भी विराजमान है।परशुराम जयंती के अवसर पर मनियर बस स्टैंड के पास एक मेला लगता है जिसे अक्षय तृतीया (एकतिजिया) के मेला कहते हैं जो करीब एक पखवाड़े तक रहता है ।परशुराम जयंती के दिन लोग शुभ कार्य का समहुत भी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसदिन शुभ कार्य करने पर शुभ कार्य अक्षय हो जाता है उसका नाश नहीं होता।

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